युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बहुत सारे लोग अपने कार्य क्षेत्र में बहुत मेहनत करते हैं।और उस मुकाम को पाने के लिये वह पूर्ण रूप से समर्पित हो जाते हैं।तत्पश्चात् वह उस स्थान को हांसिल भी कर लेते हैं। सफलता के लिये परिश्रम तो करना ही पड़ता है। जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में एक उच्च मुकाम को हांसिल कर लेता है तब उसे उस स्थिति को यथा स्थिति बनाये रखने के लिये कुछ और अधिक तथा कभी-कभी अलग तरह के प्रयास भी करना पड़ते हैं। कभी-कभी यह अतिरिक्त प्रयास बहुत साधारण से होते हैं। जिन्हें बहुत कम प्रयास के साथ इंसान फलीभूत कर लेता है। और कभी-कभी वस्तुस्थिति को बनाये रखने के लिये किये गये प्रयास अत्यधिक मानसिक तनाव को भी जन्म देते हैं। जिसका असर सीधे तौर पर मानसिक व शारिरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।एक तो उच्च मुकाम को बनाये रखने के लिये लगातार प्रयासरत रहना एवं दूसरा इससे होने वाली हानी जो मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य को जन्म देती है। उससे निपटना कोई आसान काम नहीं।फिर भी लोग इन सब परेशानीयों की प्रत्येक अवस्था को पार करते हुए बरसों और कभी-कभी तो जीवन भर यथा स्थिति बनाये रखते हैं। ऐसे एक दो ही नहीं अनगिनत उदाहरण हैं हमारे सामने।ऐसे ही लोग समाज में एक आदर्श स्थापित करते हैं। ऐसे लोग हमारे जैसे ही होते हैं। लेकिन इनका प्रयास करने का स्तर तथा तरीका कुछ अलग हट कर होता।और यही तरीका इन्हें लोगों से भिन्न एवं लोगों का आदर्श बना देता है।यदि आप भी चाहते हैं लोगों का आदर्श बनना तो जिस भी दिशा में आप आगे बढ़ना चाहते हैं उस दिशा में इमानदार प्रयास के साथ ही अभिनव पहल के साथ नित नये प्रयास तथा प्रयोग करना होगा।इस बात को हम इस तरह से समझ सकते हैं कि एक कलाकार जब कोई चित्र बनाता है तब जिस भी नंबर के ब्रश की आवश्यकता होती है।वह उसी नंबर का ब्रश स्तेमाल करता है। बारीक ब्रश की जगह मोटा ब्रश उपयोग में नहीं लाता है। इस तरह से बहुत सारे स्तरों को पार करने के पश्चात् ही आपकी यात्रा अपने अंतिम पड़ाव अर्थात् लोगों के लिए आदर्श बनने वाले मंच तक पहुंचती है अर्थात् वहां जाकर रुकती है। और यहीं से इस आदर्श स्थिति को बनाये रखने के सारे जतन शुरू हो जाते हैं। हमें यह याद रखना होगा कि यह दुनिया सिर्फ उन्हीं लोगों को याद रखती है जो कुछ अलग हट कर करते हैं। अपने आदर्श से प्रभावित होकर आदर्श बनना निश्चित रूप से मुश्किल काम है। क्यों कि आपका आदर्श तो पहले ही आदर्श स्थापित कर चुका है। फिर वही आदर्श स्थापित करने में कौन सा नयापन है। इसे कुछ लोग नकल या कॉपी करना भी कह सकते हैं। तब क्या आदर्श बनने की राह को यहीं रोक देना उचित होगा।निश्चित रूप से इसका उत्तर ना में होगा।क्यों कि अभी तक आप अपने अभिनव एवं अतिरिक्त प्रयास के कारण आदर्श स्थिति को पा चुके हैं। अर्थात् आप अब आदर्श बन चुके । अब आपको अपने आदर्श से एक पायदान ही तो बस ऊपर जाना है। हम मानते हैं कि अब आपको बहुत अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। और अब आपको अपने आदर्श का आदर्श बनने से कोई नहीं रोक सकता।
श्रीमती रमा निगम
वरिष्ठ साहित्यकार
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