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क्या तुम मेरा मान धरोगे

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

अचला के आँचल में छुपकर,

दृग-दृष्टि से  सबकी बचकर,

मनोभावों की गठरी लेकर,

सुरभित यादों की बस्ती लेकर,

आऊँगी मैं तुमसे मिलने प्रियवर,

क्या तुम मुझको पहचान सकोगे?

क्या तुम मेरा मान धरोगे?

मदमाता जब मधुमास होगा,

उच्छृंखल यौवन का वास होगा,

रातरानी का जब सुवास होगा,

ग्रह-नक्षत्र में प्रीत का आवास होगा,

साक्ष्य सुधाकर का जब होगा उजास,

क्या तुम मेरे बनकर आन मिलोगे?

क्या तुम मेरा मान धरोगे?

छम-छम सरिता से लाऊँगी छंद मैं,

सुमन के कपोलों से लाऊँगी मकरन्द मैं,

फेंक दुखों की पोटली लाऊँगी आनंद मैं,

व्यवधानों से माँग लाऊँगी पल चंद मैं,

बनाऊँगी निज श्वासों की जब वात मंद मैं,

क्या अपरिमित प्रेम को उन्मान सकोगे?

क्या तुम मेरा मान धरोगे?

डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )

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