इजाज़त ही नहीं मिलती

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जब ढेर सारी पड़ी उदासियां
कमरे में कबाड़ की तरह
जिद और कसक में
जमा होती ही चली जाती हैं
जब ढेर सारी सिसकियां
चुप्पियां बन सिलती जाती हैं।
इजाज़त ही नहीं मिलती हैं
कुछ अर्थ समझ सकूं
कुछ सूकून तलाश सकूं
अब जब उम्र, उम्मीद नहीं
बस एक गुज़र जाना चाहती है।
दिखावे को रिश्तों में दाखिलों से
बस दोहराती है जिंदगी
अंदर कुछ, बाहर से कुछ
न जाने कितने आडंबर
करवाती है जिंदगी
इजाज़त ही नहीं मिलती हैं
उम्र के इस मोड़ पर
जहां दिल आगे बढ़ना नहीं चाहता,
बीते लम्हें को लिखना भी नहीं चाहता।
क्यों नहीं प्रेमिकाओं की तरह
बीवी के अंदाज और नखरे
नहीं सराहे और उठाये नहीं जाते।
क्यों नहीं पति, प्रेमी की तरह बतियाते
रोज दफ्तरों और बच्चों के लिए
उदासियां, कबाड़ की तरह
जमा होती ही चली जाती हैं।
इजाज़त ही नहीं मिलती हैं
कोई फरमाइश फरमाये
जिम्मेदारी के साये में
चुप्पियां, चुपचाप से
सबकुछ उपर से अच्छा दिखाती है
इजाज़त ही नहीं मिलती
रिश्तों में आजमाते हुए
निकल जाये या निकाल दिये जाये,
कबसे बेवजह अटके से पड़े हैं
आपकी अच्छी खासी जिंदगी में…..
इजाज़त ही नहीं मिलती…..
— अन्नु प्रिया,
कटिहार , बिहार
 
				



