कला-साहित्य
कन्यादान महादान

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
कैसा समाज है ये कैसी विडंबना
शादी ना हुई सौदा हो गया
लोग गिनते रहे दहेज के रुपये और बर्तन
पिता का प्यार इस सबमें कहीं खो गया
किसी ने ना देखे आँसू उस पिता के
जिसने कलेजा निकाल दे दिया
किसी ने कहा गाड़ी नहीं दी
तो किसी ने बेड सस्ता दिया कह दिया
बाराती तो छोड़ो रिश्तेदार भी कम ना होते
ढूंढते रहते बस काम बिगाड़ने के मौके
जब कुछ ना मिलता कहने को तो खाने में कमियाँ निकालते है
थोड़ा सा नमक भी कम लगे तो बाल की खाल निकालते हैं
कहते हैं व्यवस्था कुछ ठीक नहीं है
ये वही लोग होते हैं, जिनके पास घर में बैठक भी नहीं है
शर्म करो मौकापरस्तों कुछ तो लिहाज करो
किसी की जमापून्जि पर ना ऐसे विवाद करो
क्योंकि ना कर्ण इतना महान ना, ना राजा बलि इतना महान है
सबसे महान है वो पिता जिसने दिया कन्यादान है
(गरिमा शर्मा “गीतांजलि”)
मध्यप्रदेश



