कला-साहित्य

जातियां

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

लिख रही हैं/ जातियां

—दिख रही हैं/ जातियां

—मिटना इन्हें आता नहीं है/

——-उग रही हैं /जातियां

पत्ते जितने बाग में हैं/

—जातियों के नाम हैं

—पेड़ की हर टहनियों पर/

——-खिल रही हैं जातियां

जाल फैला जातियों का/

—हैं जमीं जकड़े हुए

—मुमकिन नहीं इनको छुड़ाना/

——-हर गांठ मेें हैं जातियां

छोटी हैं / पर हैं बहुत/

—पिछड़ी हुई कुछ जातियां/

— दूर की/ कुछ पास की/

——-ऊंची बहुत हैं जातियां

कुछ दलित के नाम पर/

—कुछ हैं /खड़ी ऐंठी हुई

—कुछ ठगी सी/ कुछ पिटी सी/

——-बिखरी हुई हैं /जातियां

हाल इनका कौन पूछे/

—दर्द की किसको पड़ी

—सबके अपने पाले में हैं/

——-मंडल कमंडल जातियां

जाति की फसलें उगाना/

—अब नया व्यापार है

—और जमघट/ जातियों का/

——-वोट का बाजार है

सदावाणी

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