कला-साहित्य
बेचैन धरा
युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
कर रही चित्कार धरा
जन जन को रही पुकार धरा
खुद का अस्तित्व बचाने को
कर रही गुहार धारा।
सूख रहे हैं विटप बिहड़
हो रही हरियाली बंजर
हरीतिमा बचाने को
कर रही गुहार धरा।
प्यास पानी को तरस रहे हैं
ताल तलैया सुख रहे है
जल स्रोत बचाने को
कर रही गुहार धरा।
उगल रहे धुआं कल कारखाने
कर रहे वायु प्रदूषित जाने अंजाने
जहरीली हवा से बचने को
कर रही गुहार धारा।
शैल निशब्द खड़े पड़े हैं
उग्र ताप को झेल रहे हैं
घोर उष्णता से बचने को
कर रही गुहार धरा।।
अनगिनत वाहनों के भार से
उनसे निकलते ताप से
पिघलता हिमनद बचाने को
कर रही गुहार धरा।
खोद रहे सब धरणी को
कर रहे दोहन संपदा का
प्रकृति की संतुलन बचाने को
कर रही गुहार धरा।।
… अर्चना भारती
पटना (सतकपुर,सरकट्टी) बिहार




