कला-साहित्य

बैसाखियाँ

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

क्यों चाहिए हट्टे कट्टो को ये बेसाखियां?
जब तुम छोटे थे अंगूठा चूस के सब्र पाते
कुछ बड़े हुए तो खूब चबाते थे पेंसिल का कोना
या नाखून कुतरते पाए जाते थे ना?
कोई तो छेड़ता बालों को अपने कोई मां के कान को,
कोई छेड़ता मां का आंचल यूंही रात भर
क्या नशा है इन सब मैं भी?
जो तुम पाते हो नशीली आदतो मे।
खैनी सुपारी और बोतलों में।
जो आदते है दुश्मन तंदुरस्ती की
और घर गृहस्थी की सुख शांति की
कहते बहुत ही मन पक्का है महिलाओं का
फिर भी देखते है उन्ही को
पेग लगाते,
गम हो या हो खुशी
मनता जश्न एक ही
क्या इस क्षणिक सुख से गमों से उबर पाओगे?
राजाओं ने भी माना चाहे सब कुछ बंद हो,
पर मद के लिए मदिरा सब को उपलब्ध हो
कई देखे अपनी सेहतो के दुश्मन
जो रज के खर्च पैसे सेहतों
को लूटाते हुए
फिर उसी सेहत को पाने के लिए जमीन जयदादो को लुटाते हुए
कर देते बर्बाद भविष्य बच्चो का
घरवाली को नाबाद करते हुए
बताओ……क्यों चाहिए ये बैसाखियां तुम को ?
जो गिरा देती है तुमको अपनी और अपनोकी नजरों से?
विनाशकारी है ये राक्षस योनि की बलाए,
बचालो अपने और अपनो को इन के बुरे चंगुलो से
याद रहे नरतन न मिले बार बार
इस बार जो मिला है पवित्र तन का प्रसाद
पालो जी भर के उसी का अल्हाद
जरा देखो नशा कहा नहीं है
जाओ बागो में
ढूंढो उसे कलियों में
फूलों में
देखो इसे बच्चो की बाल लीलाओं में
घर गृहस्थी के हर क्रिया कलापों में
नशा तो है जीवन ही खुद
जरा नजरिया बदल के देखो
मित्र तो सब से ही नशीले है
जरा उनको इक्कठे बुलके देखो
जमेगी महफीले जुमलो और कविता और चुटकुलों की
भूल जाओगे गम जहां के
एक बार बस… एकबार अजमा के देखो
क्यों हो रहा है देश का युवा धन बर्बाद
चाह करभी हम न बचा पाएंगे ये नस्ल
क्योंकि साजिशो और बदगुमानियो से भरा जग सारा
सब को चाहिए किराए का सकून,सब कुछ चाहिए इंस्टेंट,
न धर्म का ज्ञान न ही इज्जत का खयाल
उन्हें चाहिए हर चीज हरहाल
थोड़ी नशे के व्यापारियों की साजिशे
तो थोड़ी है राजनीतिन्यों की
भी है हरकते।
क्यों रोक नहीं पाते धुरंधर देश अपने देश में इन का व्यापार
क्यों वैश्वक बदले लिए जाते है ?
इन को बिगाड़–उजाड़कर
तमीज और मान सम्मान भूले
भूले इज्जत बड़ों की और
भूले डर।
भटक जाते है ये इन घनघोर जंगलों में
क्षणिक सहारो के लिए
ये बेतार के सहारे
बहुत जल्द ही टूट , गर्त की और ले जाते है
क्या ये बैसाखियों के बल
जीवन नैया पार लगेगी?
भटकाव का अंत नहीं होता
यह रह भटके युवा धन को
शुरू से है संभाल लो
वरना परिवार ही नही देश,
देश ही नही विश्व का पतन
हो कर ही रहेगा।

जयश्री बिर्मी
अहमदाबाद

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