महर्षि वाल्मीकि

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
वाल्मीकि जी महर्षि,किया सृजन उत्कृष्ट।
उनकी करनी,ज्ञान से,हुए सभी आकृष्ट।।
रामायण का कर सृजन,बने धर्म का सार।
ऊँचनीच अरु जाति का,दूर किया अँधियार।।
रत्नाकर से संत बन,गहन चेतना,ताप।
वाल्मीकि के तेज को,कौन सकेगा माप।।
वाल्मीकि डाकू कभी,पर अंदर के भाव।
झटपट बन बैठे सृजक,ऐसा पड़ा प्रभाव।।
क्रोंच पक्षी का वध हुआ,हुए आप बेहाल।
कविता ने पा प्रस्फुटन,सबको किया निहाल।।
रामायण का कर सृजन,गाया प्रभु का गीत।
सब हारे,बस धर्म ने,पाई थी तब जीत।।
सीता के वनवास को,मुनिवर दिए सँवार।
लवकुश के अति ज्ञान के,वे ही थे आधार।।
वाल्मीकि ने सत्य का,करके अनुसंधान।
मानवता को दे दिया,सच में जीवनदान।।
वाल्मीकि का अवतरण,यह दिन बहुत महान।
इस दिन,इस पल की सदा,होगी चोखी शान।।
नमन करूँ श्रद्धासहित,जय जय जय हे! संत।
किया आपने जो सृजन,नहिं हो सकता अंत।।
–प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे
 
				



