कला-साहित्य
		
	
	
मेरे हाथ में भी मुहब्बत लिखी है
 
						युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
अगर गाँव में बसती बस्ती बशर की
नगर की ज़मीं पे इमारत लिखी है
यहाँ कौन जिंदा है दिखता बशर सा
सभी के दिलों में मसाफ़त लिखी है
अमीरों के महलों में दौलत लिखी है
लकीरों में मुफ़लिस की आफ़त लिखी है
क़ज़ा ही नहीं है मुहब्बत की लेकिन
मुहब्बत में हरदम ही फ़ुर्क़त लिखी है
बड़ी ख़ूबसूरत यूँ किस्मत लिखी है
मेरे हाथ में भी मुहब्बत लिखी है
ये दिल सिर्फ उसका रहेगा हमेशा
मेरे बाद उसने वसीयत लिखी है
प्रज्ञा देवले✍️
 
				



