कला-साहित्य

रिश्तों की डोर

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

विश्वास की वर्तिका से बुनी जाती रिश्तों की डोर,

मिथ्या से परिपूर्ण जन कभी न समझे इसका मोल।

कुछ बेनाम से रिश्ते भी बन जाते हैं आभासी इस संसार में,

स्वनिल पंख पर सवार प्रीत की बारिश के आसार में।

रिश्ता चाहे खून का हो या दिल के एहसास का,

बंध जाये जो आत्मा की डोर से रहता उम्र भर का।

जितनी मजबूत उतनी ही नाजुक होती,

देती साथ सदा पर झूठ से यह भावुक होती।

दोस्त,प्रेमी ,भाई बहन या मात पिता संग,

त्याग समर्पण से रिश्ता बनता जीने का अभिन्न अंग।

हर रिश्ते को तुम  शिद्दत से  निभाओ,

ऐतबार के पहिये पर भरोसे की नींव बनाओ।

                 रीमा सिन्हा (लखनऊ)

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