कला-साहित्य
शब्द गढ़ते चले गये

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जिंदगी मे बढ़ते चले गये
हर गम़ो से लड़ते चले गये
विजय पा ली जब दर्द पे
मुस्कुराते हम चले गये।।
मुस्कुराना मेरी खुशी ना भाया
लोगों को वो भड़कते चले गये
बिछाने रगे राह मे कटु शब्दों
के कांटें हम टूट बिखरते चले गये।।
बिखरने वाले गैर हैं समझा नजरअंदाज
कर कलम संग फिर जोड़ते चले गये।।
मन मे थे चंद सवाल लड़ उससे हम
जवाब खुद से पा चलते चले गये।।
जब अपनों ने ही तोड़ दिया शब्दों से
आंसू बहाते हम चले गये।।
संभाल खुद को मन बोला वीना समझ
हम शब्द इस वक्त भी गढ़ते चले गये।।
वीना आडवानी”तन्वी”
नागपुर, महाराष्ट्र




