कला-साहित्य
		
	
	
होने वाली संभावनाएं..

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
तुम्हारी सारी की सारी अनुपस्थितियां
एक-एक कर मिल जाती हैं मुझे
एक परिचिता की भांति ,
तुम्हारे ही शब्दों में
कभी कविता बनकर..
कभी ग़ज़ल में बंधकर.. !!
तब..
मुझे नहीं होती कैसी भी शिकायत
न तुमसे..न ईश्वर से..
और न ही किसी विधि-विधान से ,
बस, “न होने” में से तलाशने लगती हूं
बहुत सारी “होने वाली संभावनाएं”
कभी फूल बनकर..
कभी दूब बनकर.. !!
सुनों..
तुम दिखते रहना ऐसे ही
कि उम्मीद की इस छोटी सी झलक में
मैं वार आऊंगी
सारी उदासियों के क्षण
कभी कल्पनाओं में खोकर..
कभी यादों में ठहरकर.. !!
याद तो रखोगे न !
भूलोगे तो नहीं !
कि प्रतीक्षारत हैं मेरी सब कविताएं
मेरी ही तरह
कभी सूरजमुखी सी बनकर..
कभी सिर्फ चुप रहकर.. !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ , उत्तर प्रदेश
 
				



