कला-साहित्य

॥ नाव पुरानी ॥

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

नदी है गहरी नाव पुरानी

मंझधार में फँसी है जीवन की कहानी

साहिल खड़ा देख मुस्कुराता है

पर मदद से दूर भग जाता है

रे मांझी तूँ अब तो बचाने आजा

उपर वाला नाविक बन कर बचा जा

ले चल पहुँचा दो हमें किनारा

पा लेगें जीवन फिर दुबारा

जीवन जब तूँने दी है अनमोल

भॅवर से निकाल हमें बिना ले मोल

सुन मेरी विनती ओ त्रिपुरारी

कर दो बेड़ा पार अब हमारी

मन बैचेन है तन अति भारी

बुद्धि विवेक सब कुछ गई मारी

तुँ नायक बन कर आ जाओ

भँवर में फँसी मेरी नाव बचा लो

तुँने दिखाया था जीवन का सपना

कोई नहीं दीखता है जग में अपना

किस बात की गुस्सा है तुम्हारी

क्षमा कर दे सारी भूल हमारी

तेरे दर पे जब मैं जब आ जाऊँगा

शीश झुकाकर मैं क्षमा माँग आऊँगा

आ जाऊँगा तेरे दर पे ओ चक्रधारी

प्रकट हो जा ओ कृष्णा मुरारी

जीवन के पथ पर मैं भटक गया हूँ

तमस की दलदल में मैं फँस गया हूँ

राह दिखा दे ओ धनुषधारी

बिगड़ी बना दे जो क़ाम है हमारी।

उदय किशोर साह

मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार

9546115088

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