कला-साहित्य
तूफान

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
यह जीवन एक तूफान ही तो है
कभी झंझावातों का मेला इसमें
कभी तूफानों का बसेरा इसमें
हर क्षण इंसान टकराता रहता
जीवन तो सुख दुःख का बवंडर
कभी सहकर यह आगे बढ़ जाता
कभी इसमें फंसकर ये अकुलाता
नहीं बाहर यह इससे निकल पाता
माना कि यह पथ तूफान भरा है
उसके बाद समन्दर शान्त खड़ा है
गहन अंधियारी निशा को चीरकर
अरुणिमा लिए रवि स्वागत में खड़ा है
बाधाओं से डरकर हार ना मानो
तूफान से घबराकर पथ ना छोड़ो
जीवन में विपदा तो है आनी जानी
स्वर्णिम भविष्य की आस ना तोड़ों
स्वरचित एवं मौलिक
अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश