कला-साहित्य
ग़ज़ल : उसके अल्फ़ाज़ से तहज़ीब की ख़ुशबू आए

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
उसके अल्फ़ाज़ से तहज़ीब की ख़ुशबू आए
चाहता हूं कि मिरे यार को उर्दू आए
मार ही डालते वरना ये अंधेरे मुझको
रौशनी ले के मेरे गांव से जुगनू आये
ऐसा लगता है मुझे भूल नहीं पाया वो
उसने जब याद किया आंख में आंसू आये
मैं तिरे गांव के मेले में हमेशा आया
और यही सोच के आया कि कभी तू आये
हम जो शाइर हैं ख़यालों में महक रखते हैं
हम कभी छू लें अगर ख़ार तो ख़ुशबू आये
कोई इंसान को इंसान बना ही न सका
कितने दरवेश यहां कितने ही साधू आये
वो मुझे याद करे और मैं हाज़िर हो जाऊं
काश उस शख़्स को बंगाल का जादू आये
चाहता था कि मुझे कोई संभाले ‘बंधू’
और फिर मेरी मदद को मिरे बाज़ू आए
—शिवशरण बन्धु हथगामी
हथगाम-फ़तेहपुर
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