कितने भी हों अँधेरे

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जीने का संबल दे प्रभु
मैंने तेरा ही गीत गाया है
तुझसे ही आई है आत्मा
झूठी यह सब क्या है
छीन लो अब सारे दर्द
दर्द ने मानव रुलाया है
माना कि दर्द है जरूरी
पर यह काला साया है
मान लूं कि तूने है लिखा
हर बार तू ने संभाला है
तेरी शक्ति की न कोई थाह
तू ने कितनों को हंसाया है
भंवर में जो भी डूबा है
तू ही उसका बना सहारा है
छाए कितने भी हो अंधेरे
तूने अंधेरों को मिटाया है
चल रही हैँ जो मेरी सांसे
तूने ही डोर को चलाया है
बहा दे अब शांति की लहर
अब मन कुछ घबराया है
अब ना हो कोई संकट
धरा ने बहुत बोझ उठाया है
मांगू कुछ नहीं है स्वार्थ
जगत पिता तेरा ही साया है
परहित की मैं बात करूँ
प्रभु यह तुझे तो भाया हैं
तेरी भक्ति का प्रमाण मिले
हँसता यह सब संसार मिले
प्रेम में डूब तेरे गीत गुनगुनाया है
तेरी कृपा कहीं धूप कहीं छाया है।
कर्मभूमि कर्मो का सब खेला है
जान लिया है जग एक मेला है
उम्मीद पर कायम दुनिया है
आश्रित तुझ पर यह दुनिया है
पूनम पाठक बदायूँ