कला-साहित्य

नशा

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

हर शख्स यहां मतलबी है, ना किसी को किसी की पड़ी है।

हर किसी को छाया ख़ूमार है,
कोई चूर है दौलत के नशे में,
तो कोई ग़रीबी के नशे में मग़रूर है।

किसी को नाज़ है इश्क पर तो कोई हुस्न का नशा रखता है,
कोई आशिकी करता है नशे में पड़ कर तो आशिकी में पड़कर इश्क का नशा करता है।

कौन किसी की यहां परवाह कर रहा, हर शख़्स मतलब अपना सीना कर रहा,
कोई टूटे कली कच्ची या फूल बन के बिछाई जाए सेज पे,

कौन करता चाह किसी की वो तो बस उसे रौंदने से रखता मतलब है।

क्या ओढ़ाए कोई इज्ज़त की चादर किसी को,
खुद की इज्ज़त जो करता नीलाम है,

पर्दे के सामने रहता जो खास वो पर्दे के पीछे रहता आम है,
वो भी औरों की तरह से करता कत्लेआम है।

ना देख तु उम्मीद भरी निगाहों से किसी की तरफ,
ना उम्मीदी से भरा पड़ा जहान है,
ना देता यहां सहारा कोई किसी को,
दिखावे का अपनेपन का नाम है।

नशे तो बहुत देखे मैंने जहां में, खुद्दारी का एक नशा तेरे अन्दर देखा है,
ना मरने देना इसे, ज़िन्दा इसे रखने से ही तेरी परवाज़ को आसमान मिलेगा,
फिर तुझे इज़्ज़त और प्यार का जहां मिलेगा।

प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)

 

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