कला-साहित्य
बीज

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
मानव मस्तिष्क है बहुत सारे विचारों को
पैदा करने, पालने-पोसने वाली
एक उर्वर भूमि,
बीज बोए जाएंगे इसमें जो
नफरत, घृणा और भेदभाव के तो
फलस्वरूप उसके पाएंगे हम
अपने चारों तरफ फसल एक
हिंसक, क्रूर और अत्याचारी समाज की,
जाति आधारित हिंसा, धर्म आधारित हिंसा,
नस्ल आधारित हिंसा यहां तक कि
लिंग आधारित हिंसा के भी मूल में है
छोटी उम्र से ही बच्चों के दिमाग में
उनके परिवार अथवा समाज द्वारा भेदभाव की
प्रवृत्ति को जाने अनजाने भरा जाना,
या फिर बच्चों व किशोरों को लगातार
हिंसात्मक गतिविधियों के माहौल में रखे जाना,
आज अगर हम देखें अपने आस-पास
हिंसा व क्रूरता के आरोपियों को
तो पाएंगे उसके बीज उस इंसान के
बचपने या किशोर उम्र में ही कहीं।
जितेन्द्र ‘कबीर’